Hypocrite within us |
जल ही जीवन के देते नारे
कहते तुम हो जीवन हमारे
पर क्या? तू जल का मोल है जाने
नल को खुल्ला छोड़ कर जाते
घंटो शावर में नहाते
व्यर्थ में मुझको क्यों बहते !
सभी प्रेम करते इससे है
यह है सभीका प्यारा
इसीसे है अब सारी सुविधाएं
ये है अनोखी विद्युत् धारा !
विद्युत् भी है परेशां
मुझे बनाने में लगा है
मानव का ये इंधन सारा
और बचने में लगा है
एनेर्जी इंजिनियर बेचारा !
पेट्रोल-डीसल के भी बढ़ गए दाम
आम आदमी हुआ परेशां
पर कैसे छुटे ऐशो आराम
लडको को है घुमने जाना
तेजी से है बाइक भागना
गलियों में है धूम मचाना
और बिटिया स्कूल शान से जाती ..
पापा की प्यारी स्कूटी चलाती!
आम आदमी करे कैसे ?
गमना गमन और प्रवास
ऊपर से सरकारी हाथ
पब्लिक ट्रांसपोर्ट की लगी है वाट!
करते है सब बचत की बात
है सब चाहते मेर्सडेस की ठाठ !
चीख रहे ये सब अमूल्य धन
ना पहुँच जायें हम अंतिम चरम पर
अंकित हो अब मानव पटपर
जब तक ना हो हम सब तत्पर
करे ना परकृति का संरक्षण
सफल ना होगा जीवन धरा पर !
Theme : An Epigram describing a hypocrite within us as human being for there own survival and
luxury destroying nature and natural resource.
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