अनजानों सी बातें होती है आजकल
सीने से लगा ,क्यूँ अपना बनाते है लोग !
कभी लिखे थे मोहब्बत के पयां जिनमे,
कोरा कागज समझ ,अरमानों को
क्यूँ आग लगाते है लोग !
हाथ थामते साथ चलते, मंज़िल दिखाते,
आधे सफ़र में, क्यूँ छोड़ जाते है लोग !
डूबती ज़िंदगी को साहिल देने वाल,
मझधार में क्यूँ छोड़ जाते है लोग !
भुलाए नहीं भुलाते जो रिश्ते,
रिश्ते ऐसे क्यूँ बनाते है लोग !
अभी तो सपनों की ताबीर टूटी नही,
सपने ही सही मेरे ,
हकीक़त में सपने तोड़ जाते है लोग !
वजह क्या होती हम सोचते ही रहे ,
सफाई हमारी तो कुछ सुनते लोग!
हम ही क्यूँ तड़पते और जलते !
तकलीफ मे मेरी तो सुलगते वो !!
दिल की चोटें बस हम ही क्यूँ भाता ,
दर्द जुदाई का काश उन्हे भी सताता !
जैसे तोड़ा मेरा दिल !
उनका भी दिल जरा टूट जाता,
अज़ीज़ कोई उनका उन्हे छोड़ जाता !!
मेरी दिल की लगी को दिल्लगी समझे,
काश मेरी तकल्लुफ़ का अंदाज़ा तो लगाते लोग !!
Pic:Google.
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