Tuesday, May 14, 2013

Log-2 लोग لوگ




अनजानों  सी बातें होती है आजकल
सीने से लगा ,क्यूँ अपना बनाते है लोग !

कभी लिखे थे मोहब्बत के पयां  जिनमे,
कोरा कागज समझ ,अरमानों को 
क्यूँ  आग लगाते है लोग !

हाथ थामते साथ चलते, मंज़िल दिखाते,
आधे सफ़र में, क्यूँ छोड़ जाते है लोग !

डूबती ज़िंदगी को साहिल देने वाल,
मझधार में क्यूँ छोड़ जाते है लोग !

भुलाए नहीं भुलाते जो रिश्ते,
रिश्ते ऐसे  क्यूँ  बनाते  है लोग !

अभी तो सपनों की ताबीर टूटी नही,
सपने ही सही मेरे ,
हकीक़त में सपने तोड़ जाते है लोग !

वजह क्या होती हम सोचते ही रहे ,
सफाई हमारी तो कुछ सुनते लोग!

हम  ही क्यूँ  तड़पते  और जलते  !
तकलीफ मे मेरी तो सुलगते वो !!

दिल की चोटें बस हम ही क्यूँ  भाता ,
दर्द जुदाई का काश उन्हे भी सताता !
जैसे तोड़ा मेरा  दिल !
उनका भी दिल जरा टूट  जाता,
अज़ीज़ कोई उनका उन्हे छोड़ जाता !!

मेरी दिल की लगी को दिल्लगी समझे,
काश मेरी तकल्लुफ़ का अंदाज़ा तो लगाते लोग  !!

Pic:Google.

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