Saturday, September 14, 2013

Fakir







इस शहर मे मैं जितना बदनाम होता गया
उतना ही शहर मे मेरा नाम होता गया !

इलज़ाम लगाने वालों का पता नहीं
मैं अपनी चाल और भी शाहाना होता गया !

जमीन में सुलाने वालों को इल्म नहीं 
मिट्टीसे ही पैदा हुआ हूँ मैं
दर्द देने वालों खबर क्या
जहर उगलने वालों, मैं
जहरीली हवाओं में और भी मदहोश होता गया !

मेरी खबर लेने वालों को खबर नहीं ,
खबर बनाने वालों को खबर नहीं,
मेरा आशिक उनकी खबर रखता गया !

मेरा ज़िक्र हुआ करता था मेरी महफ़िलों में
अब तो जिक्र और फिक्र दोनों ही है
सभी की महफ़िलों में
मेरा कसूर इतना था,
की मैंने इश्क़ किया था अपने खुदा से
अब जब वो आ मिला था
जिस्म हमसफर सा था और उससे हमनावई न रही
मैं तो उसकी मस्ती में मस्ताना होता गया !

अब मेरी इज्ज़त का ख़याल उसे रेहता है
मेरा इश्क़ न कम हुआ है न होगा
मौसम बदले तो बदले मेरा सुरूर न कम होगा
मैं तो उसके इश्क़ में सच्चा आशिक़ होता गया !!

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