Wednesday, January 23, 2013

Death prophecy मौत की मौत موت


ऐ खुदा ! ये कैसा दौर मेरी उमर से गुजरा
कि मैंने, अपनी कब्र को खुद ही सजाया है !

मैंने हजारो गज की ईमारत बनाई, इस जहाँ  में
आखिर तो दो गज का आशियाँ ही पाया है !

दुनिया में रौशन करने चले थे नाम अपना
पत्थर के चंद टुकडो में अपना नाम खुदवाया  है !

कोई और नहीं था चराग रौशन करने को
आज देखो मैंने अपने ही कब्र में चराग जलाया है !

महफ़िल तो थी मगर गैरों की, माटी दे रहे थे वो
और मैंने खुद ही धुल का गुलदस्ता बनाया  है !

बेदाद होगा गर जिक्र न हो इस मिटटी का !
जिससे मैने जिस्म पाया  और जिसमे मेरा जिस्म समाया है !!

सोच  रहा था अब तलक, हमने जिया जिंदगी को
कोई क्या जाने की,जिंदगी को अभी मैंने पाया है !

जब तक थे जिन्दा रोते रहे 
ऐ - खुदा ! अब, तूने जमकर मुझे हसाया है !

दुखती रग  पे तूने रखी  हात, ख्वाहिश सारी  ख़त्म हुई,
चश्में-ऐ -तस्सली, निगाहों से जो पिलाया है !!

कसम से कितनी तारीफ करू तेरी ?
मुर्शद ने दी रौशनी, और अपना इल्म कराया है !

कितना आजमाता तू , अब बारी हमारी!
ज़ाहिर करने आप को ,तूने अपने को मुझसे आजमाया है!!

परेशानियाँ क्या परेशां करेंगी  मुझे,
कि अब कुछ, ऐसा हौसला पाया है !

हर पल तू ही दिखे ,तेरा ही रंग-ए -जहाँ ये  !
हर कतरे में हूँ मैं ,तूने ऐसा  खबर कराया है !!

Theme: A ballad presenting a monks life before death, that is attaining oneself before material death.

pic:worldatlas.com

Monday, January 14, 2013

Makar Sankrant मकर संक्रांत







पौश मास की शीतलता छोड़,अब आदित्य तेज बरसाएँगे
कर्क की कक्षा छोड़ अब श्री भास्कर, मकर मे स्तीथी बनाएँगे
हेमंत मे रंगी धरा  है, जब हर प्रकार के रंगो में
मनु समाज इस अवसर में ,धरती का आँचल रंगोली से सजाएँगे !!

मानसरोवर से लेकर कावेरी के घाटों तक,
द्वारिका के पट से गंगासागर  के पाटों तक,
सप्तधान्य  का आलिंगन कर, सप्तधातु से पुष्ट हो
हर हर गंगे की गर्जना कर गोते लगाएंगे !!

तृप्त होगा तन और मन,धरती के नवागंतुकों  को लेकर
भोगी के इस प्रथम दिवस में ,श्री सूर्य देव और पृथ्वी माँ के चरणों मे
पूजन अर्चन कर सब अपनी कृतज्ञता दर्शाएँगे !!

सजी धरा की हर डाली ,मुस्कुरा रही हर कली
महक रहा हर आँगन अब तिल और गुड की खुशबू से
तिल मे मिल  गई गुड की मिठास,मना रहे सब हर्षो उल्लास
तिलकूट,गज़क और लड्डू, आज मजे  से खाएँगे !!

आज सजेगा अंबर तितलियों की उड़ानों से
पतंग उड़ेगी, इठलेगी-मचलेगी भवरों सा आसमानों में,
आज लड़ेंगे और भीड़ेंगे नील- गगन के गलियारों में,
करेंगे मुहजोरी और करेंगे सीनाजोरी माँजो की तलवारों से,
टीनों मे, टपरों में, चाँदनी और मैदानो आज पतंग उड़ाएंगे !!

और जैसे बढ़ेगा तेज रवि का, ज्ञान-प्रकाश जीवन में बढ़े
जैसे अग्रसर हो जब ऋतू-ग्रीशम की ओर , राग-रोग हो  भाग खड़े
' असतो- मा-सदगमय ' की मंगल भावना साथ लिए संक्रांत मनाएंगे !!


Theme: Makar sankranti is a hindu festival celebrated in winter on the day of transmigration of Sun from Tropic of Cancer to Capricorn.This is also celebrated as the harvest festival in all part of India.
Also Known as Lohri, Nava-khai, hobbillu,Bhogi-sankrant, shishir sakrant...etc.It's a festival of joy prosperity and to thank mother nature.

Pic Source: various.

Monday, January 7, 2013

Today's Indian Democracy भारतीय प्रजातान्त्रिक स्तिथि

Democracy

सरकार एक के बाद एक घोटाले पे घोटाले किये जा रही है
जैसे जनता के चेहरों पे तमाचों पे तमाचे दिए जा रही है !

कही आग लगायी जा रही है  कही सुलगाई जा रही है 
हर एक काम के निशाँ अब मिटाए जा रहे है 
कहीं कई कट रहे है , कहीं कई  मर रहे है ,
सारी  दरिंदगी को अब , ये सेक्युलर कह रहे है !

ऐ दगाबाजों तुमसे,-कुछ शहर में और सजर में लड़ रहे है 
हर एक रूह अब तुम्हारी दास्ताँ- ऐ- मौत लिखने  तरस रही है 
हर एक हिंद्परस्त अब फेसबुक यही शेयर कर रहा है ,
कर लो जितनी है ज्यादती करनी  ...तू जल्द ही मर रही है !

ये जो इन्कलाब की आगाज़ , एक यलगार सी लगती है ,
और आज कल मै एक ख्वाब देखता हूँ --
ये  जूनून सरजमीं में जारी रहा,
और मक़ामी, सफ़ेद पोश दरिंदो को  बेत्ख्त कर रहे है !!!


Theme:  A threnody describing  the current political situations in India and belief of overcoming it
pic source: http://progreso-weekly.com

Saturday, January 5, 2013

A Call आवाहन بلاوہ



कोई आज फिर! मृत शारीर में  मेरे,नवजीवन का संचार करे  !
अब बीते ये हिंसा के काली रात,
ना अब अपनों का संहार करें!
बंद करें ये मजहबी तबाही,
मानवता  का फिर इतिहास रचें !

अंधी हुई मानवता अब
अँधा हुआ अब जन मानस है
मौलिक संस्कारों का सिंचन करके
हम सब प्रज्ञावान बने !

शाशन हुआ है मूक बधिर
युवा हो गया है अधीर
उद्यम, साहस धैर्य से भरकर
प्रगति का संधान करें  !

बदले विचार, बदले निश्चय
बदले समाज और देश को
ज्ञान और पराक्रम से तपकर 
हे भारत वंशी , भारत का उत्थान करें !

आवाहन है के ! युवान अखंड हो, प्रचंड हो ,
हो उल्लास्सित , हो पल्लवित एक नयी  शुरुवात करें  !  भारत !


Theme: an Idyll for indians

pic:bbc.co.uk