Tuesday, March 5, 2013

कचरा Kachra




जन्मा मैं कचरे की ढेर में
कचरा ही कुदरती बिछौना हुआ,
कचरा ही ओढ़ने की चादर,
लोगों ने नाम रख डाला,कचरा ! बचपन में !!

न साईं के हाथ का साया ,
न माँ के आँचल की छाया,
न सरपरस्त,न रिश्ते ,
न आका , न फ़र्माबरदार,
कुदरत ने मुझे आजमाया था बचपन में !!

कटे फटे कपड़े तन ढकने को मिलता,
जब भी ट्रैफिक-सिग्नल पे होता तो,
मुझसे कम कपड़े मे लोगो को देखता
बस उनमे चमक जादा होती, कहते फ़ैशन है !
आज समझा मैंने भी डिज़ाइनर कपड़े पहने थे, बचपन में !!

दो गज़ ऊंची झोपड़ी मे मेरा आशियाँ होता,
प्लास्टिक की पन्नियाँ मेरा खिलौना होती,
झोपड़ी से टपकते पानी मे नाँव चलाना,
पन्नो की हवाई जहाज़ उड़ाना,मेरा शौक़ !!
छीन लिया था उसने, खिलौने मेरे बचपन में !

कहते थे ,पर्दे के उस पार स्कूल है ,
आज भी मेरी आँखें झरोखे से ,स्कूल के सपने देखती
कूड़े में कुछ पन्नो को बे- सबब देखता ,और सोचता 
लिखने वालों पन्नों से तो , अपना वास्ता कहा रहा है !!
पढना न सही , पेट पालना सिख लिया था मैंने बचपन में !

दिन बीते कूड़े , कचरे  और गुरबत में,
बिरादर, मोहल्ले , शहर  का खयाल कहाँ  आता,
कैसे जीते बचपन को,
शायद भूल गया था  बचपन को , बचपन मे !!

Theme: A story of a poor child.

Pic Source: http://jamiemoats.theworldrace.org










No comments:

Post a Comment