Monday, August 5, 2013

Mrityunjaya मृत्युंजय لازوال




 
कवि  निर्मोही होता है ,कवि निरंजन होता है
प्रकृति की नयनो मे काला अंजान होता है
न आकांक्षी  होता है, न अभिलाषी होता है
सरल जीवन को मुकुट कर गौरान्वित होता है !

चमक आरसी सी ,विचारों का आँगन होता है
विवादों के बादलों से न वो डरता है, न झिझकता है
नीले गगन में,  जैसे आज़ाद परिंदा होता है
कवि निःसंग होत है ,कवि अंतरंग होता है  !


जीवन के हर पहलू  को ,  ताने बाने सा बुनता वो
बुरे भी और अच्छे भी,पल पल का संचयन करता वो
तटस्थ हो इति, अंत और अनंत का सृजनकर्ता है
कवि कृति कार होता है, कवि निर्माता होता है !


समाज रूपी इस बगिया में कांटे भी और फूल भी
माली बन सबको एक सा चुनता है!
काव्यांजलि का प्रारूप दे उसे,इत्र सा हमपर छिड़कता है!
कवि गंधी होता है, धर्म का संगी होता है !

न पहुंचे जहां सूर्य की किरणें,उस थल पर जाता है
दिवा रात्रि को दिव्यता देता ,अंधकार मिटाता है 
नभ का देदीप्यमान ध्रुव तारा  होता है
कवि अचल भी और अनिकेतन होता है !

समय समय पर ,ऋतंभरा को धर्म ज्ञान से भरता वो 
सभी प्रकार के रसों से उसे सुसज्जित करता वो 
करता है वो काव्य की रचना , और कवि कहलाता है!
कवि मनुस्मृति सा अनुस्मारक होता है !

कौन है जो इस धरा पर मृत्यु को झुटलता है ?
जीवन को जीवटता देता, प्रेरक होता है !
न हो पंच भूतों में फिर भी !
कागज़ के टुकड़ों मे ही ,
और नहीं तो मुख से ही,  स्फुरित होता है
याद दिलाता सबको अपनी, हृदय सा स्पंदित होता है
कवि अनश्वर होता है ,कवि मृत्युंजय होता है!

Dedicated to all writers, poets, noble men and history makers.